Tuesday, March 2, 2010

हवाओं की उंगली पकड़कर चलो...

होली की दो दिन की छुट्टियाँ मनाने के बाद दफ्तर जाकर बैठा ही था कि मोबाइल बजा. उधर से आई आवाज़ ने मुझे सन्न कर दिया...सर, मखमूर सईदी साहब नहीं रहे..फोन तो थम गया, लेकिन मैं बहुत देर तक थरथराता रहा. कई मुशायरे आँखों में घूम गए, जिनमें जनाब मखमूर साहब को अपना कलाम सुनाते हुए, दिल में हलचल मचाते हुए महसूस किया था. खासकर जब वह अपना यह शे'र लहराते हुए सुनाते कि 'हवाओं की उंगली पकड़कर चलो/ वसीला यही मोतबर है यहाँ', तो शिद्दत से महसूस होता था कि हमें वाकई हवाओं कि उंगली थाम लेनी चाहिए. जब सारे वसीले नाकारा साबित हो चुके हों, तब हवाओं से बढ़कर और हो भी क्या सकता है? वह हवा, जो हमारी सांस है, वह हवा, जो हमारे इर्द-गिर्द जाने कैसी-कैसी खुशबू फैला जाती है, वह हवा, जो हर दौर की नुमाइंदगी करती है, वह हवा, जो हमें जाने कहाँ से कहाँ बहा ले जाती है.
अगर आप मखमूर साहब के मज़्मुओं 'सियाह बर सफ़ेद', आवाज़ का जिस्म, सबरंग, आते-जाते लम्हों की सदा, बाँस के जंगल से गुज़रते हुए, 'पेड़ गिरता हुआ' और 'दीवारो-दर के दरमियाँ' पर गौर करें, तो पता चलेगा कि पुरानी ज़मीन पर भी कोई दिलकश शीराज़ा किस तरह तामीर किया जाता है. यानी रिवायती और जदीद शायरी के बीच किसी मुकम्मल पुल की तरह खड़ी नज़र आती है मखमूर सईदी की अदबी दुनिया. उन्हें खोकर हमने एक ऐसी आवाज़ खो दी है, जो मुसलसल अपनी ज़मीन से दूर होती जा रही दुनिया में उस हवा की तरह थी, जिसमें इंसानियत और हिंदुस्तान के माहौल की सच्ची, असरदार और ईमानदार खुशबू थी.
अक़ीदत के तौर पर हम उनकी एक ग़ज़ल पेश कर रहे हैं...

तूने फिर हमको पुकारा सरफिरी पागल हवा
हम न आएँगे दुबारा सरफिरी पागल हवा.

लोग फिर निकले वो अपने आँगनों को छोड़ कर
फिर वही तेरा इशारा सरफिरी पागल हवा.

कब से आवारा है तू मुंहजोर दरियाओं के बीच
है कहीं तेरा किनारा सरफिरी पागल हवा.

मेरा ख़ेमा ले उडी थी तू कहाँ से याद कर
ये कहाँ अब ला उतारा सरफिरी पागल हवा.

सब दरख्तों से गिरा दूँ फल मैं फर्शे-खाक पर
दे कभी इतना सहारा सरफिरी पागल हवा.

होश की इन बस्तियों से दूर कर 'मखमूर' को
तू कहीं ले चल ख़ुदारा सरफिरी पागल हवा.

....आइए, हवाओं को छोड़कर रुख्सत हुए मखमूर साहब की याद में हम सुख़नवर कुछ लम्हों के लिए ख़ामोश रहें. 'मोतबर हवाओं' को कुछ देर हमारे पास से गुमसुम ही गुज़र जाने दीजिए.

आमीन

-दिनेश ठाकुर

8 comments:

  1. स्व.मखमूर साहब को शत शत नमन भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे। उनकी गज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद।

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  2. makhmur saab ko sat at naman.....aapne jo kaha hai usne man ko gila kar diya..aapka abhari hun...chandrapal ,mumbai, http://aakhar.org

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  3. ख़ुदा बिछड़े बज़ुर्ग शायर की रूह को सुकून दे और आप उनकी और ग़ज़लों भी पेश करें तो आभारी होऊंगा।

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  4. maalik-e-do-jahaan
    us bichhuree rooh ko
    janaat ataa farmaaein...
    aameen

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  5. सदमे हूँ दिनेश भाई...न जाने कितने मुशायरों में उन्हें सामने बैठ कर सुना है...उर्दू शायरी की इस अजीम शख्शियत को हमारा सलाम...खुदा उनकी रूह को सुकून दे,...
    नीरज

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  6. एक शख्सियत जिसके कलाम हर पढ़ने-सुनने वाले के ज़ेह्न में जगह बनाने में कामयाब रहे; जिसके कलाम का इनतिखाब अदबी डिग्रियों के लिये किया जाता रहा; जिसके कलाम पर शायरी की दुनिया की कई नामी हस्तियों ने मक़ालात लिखे; जिसके कलाम उर्दू कोर्स की कई किताबों में शामिल हैं; जिसपर कई रिसाइल ने ख़ुसूसी गोशे भी शाया किये; दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह गया। मखमूर सईदी साहब अपने कलाम में हमेशा जिन्‍दा रहेंगे।
    खुदा उनकी रूह को सुकून बख्‍शे।

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  7. MAKHMOOR SAHAB KE INTKAL KI KHABAR PADHKAR BEHAD DUKH HUA.WOH AALA DARJE KE SHAYAR THE. AAPNE UNKE BARE MEIN JIS SHIDDAT SE LIKHA HAI, USNE DIL CHHOO LIYA. SATH MEIN UNKI SHANDAR GHAZAL PESH KARNE KE LIYE SHUKRIYA.
    -TASNEEM AKHTAR

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