Sunday, February 28, 2010

दिनेश ठाकुर की नई ग़ज़लें

एक
दिलों को यूँ ही खींचती है ग़ज़ल
नए दौर में भी वही है ग़ज़ल।

न जाने मुझे ऐसा लगता है क्यों
ज़माना ग़लत है, सही है ग़ज़ल।

गली के पुराने शजर के तले
तुझे आज तक ढूँढती है ग़ज़ल।

मैं हैरान हूँ फिर धनक देखकर
फ़लक पर ये किसने कसी है ग़ज़ल।

उसे देखकर नम हैं आँखें मेरी
किसे देखकर हंस रही है ग़ज़ल।

ज़रा अपने चेहरे पे रख दो इसे
अभी आंसुओं से लिखी है ग़ज़ल।

(शजर=पेड़, धनक=इन्द्रधनुष)

दो
बात ऐसी जदीद हो जाए
वो हमारा मुरीद हो जाए।

उम्र रूठी हुई है मुद्दत से
आ गले मिल जा, ईद हो जाए।

किसका चेहरा सुबह-सुबह देखूँ

सारा दिन ही सईद हो जाए।

ग़म हमेशा लगे तरो-ताज़ा
याद इतनी शदीद हो जाए।

दार पर आज जो गया हँसकर
क्या ख़बर कल फ़रीद हो जाए।

हो अगर वस्ल का कोई इमकां
सब्ज़ फिर हर उम्मीद हो जाए।


(जदीद=नई, सईद=शुभ, शदीद=तीव्र, दार=सूली, फ़रीद=अद्वितीय,

वस्ल=मिलन, इमकां=सम्भावना)

तीन
दिल ग़म से आज़ाद नहीं है
ऐसा क्यूँ है, याद नहीं है।

ख़्वाबों के ख़ंजर पलकों पर
होठों पर फ़रियाद नहीं है।

जंगल तो सब हरे-भरे हैं
गुलशन क्यूँ आबाद नहीं है।

दिल धड़का न आँसू आये
यह तो तेरी याद नहीं है।

शहरे-वफ़ा की आबादी है
कौन यहाँ बर्बाद नहीं है।

सच-सच कहना हँसने वाले
क्या तू भी नाशाद नहीं है।

कितने चेहरे थे चेहरों पर
कोई चेहरा याद नहीं है।

जो कुछ है इस जीवन में है
कुछ भी इसके बाद नहीं है।


(शहरे-वफ़ा=प्रेम नगर, नाशाद=दुखी)

चार
जमीं है धूल-सी रुसवाइयों की
बड़ी ख्वाहिश है अब पुरवाइयों की।

अकेले चल रहे हैं सब सफ़र में
न कर बातें यहाँ तन्हाइयों की।

शजर पर धूप ने वो रंग डाले
क़बाएँ जल गईं परछाइयों की।

शिकस्ता आईने भी बिक रहे हैं
ये क्या हालत हुई बीनाइयों की।

यहाँ तो काग़ज़ी फूलों के दिन है
कोई भेजे तो रुत सच्चाइयों की।

परिंदे क्यूँ नहीं आये पलटकर
हवाएँ क्या हुई अंगनाइयों की।

खुले हैं जब भी यादों के दरीचे
सुनाई दी सदा शहनाइयों की।

तेरी यादें, तेरी बातें, तेरे ग़म
अदाएँ हैं तेरी अंगड़ाइयों की।

मुहब्बत को तिजारत कहने वाले
क्या कीमत है मेरी अच्छाइयों की।


(शजर=पेड़, क़बाएँ=अंगरखा, शिकस्ता=खंडित, बीनाइयों=दृष्टि,
दरीचे= खिड़कियाँ, तिजारत=व्यापार)

8 comments:

  1. चारों गज़लें एक से बढ कर एक अहिं आपको पहले भी किसी ब्लाग पर पढा था शायद सत्पाल जी के ब्लाग पर। बहुत बहुत स्वागत है आपका। होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  2. तहे दिल से आपका स्वागत है...


    आम तौर पर ब्लॉग बनाने और कविता लिखने के नाम पर ही आजकल किल्सने लगे हैं हम..

    बस..ऊपर वाले की नज़र सही थी हम पर आज...जो हमने आपकी मेल डिलीट करने के बजाय खोल कर देख ली...

    सिर्फ पहली ग़ज़ल पढ़ी है अभी...एक बार में ज्यादा नहीं पढ़ पाते..

    ख्याल बेहद अपने से लगे.....अपना लिंक भेजते रहिएगा..
    और हाँ,
    कोशिश कीजिएगा के एक बार में एक ही ग़ज़ल डालें...
    वो भी ज़रा ठहर कर..

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  3. blog-jagat mein aapka swaagat hai...
    khushaamdeed...
    gazaleiN bahut hi achhi haiN
    Manu ki baat se ittefaaq rakhtaa hooN
    "sach-sach kehna hansne waale
    kayaa tu bhi nashaad nahi hai"
    ye sher saath liye ja rahaa hooN
    mubarakbaad qubool farmaaeiN.

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  4. आपको पढने की बरसों पुरानी इच्छा आज पूरी हुई...दरअसल हम आपके तब से फैन हैं जब आप जयपुर के नवभारत टाइम्स में फिल्मों पर लिखा करते थे..आपके लेखन का अंदाज़ सबसे जुदा और दिलकश हुआ करता था...आपकी अमिताभ की फिल्म अग्नि पथ पर लिखी रिपोर्ट अभी तक मेरे पास सुरक्षित है...अब बात ग़ज़लों की...बेहद खूबसूरत ग़ज़लें कहीं हैं आपने...एक एक शेर कमाल का है और आपकी इस फन में उस्तादी दर्शा रहा है...मनु जी ने सही कहा की आप एक बार में एक ही ग़ज़ल पोस्ट करें और एक और दूसरी ग़ज़ल पोस्ट करने के दरमयान तीन चार दिन का वक्फा रखें...

    आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है...
    नीरज

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  5. Bahut lajawaab ... khoobsoorat hai sab gazlen ...
    Neeraj ji ke sujhaav uttam hain ... unko jaroor sochiyeg ..
    aapka swaagat hai blog jagat mein ... holi ki bahut bahut mubaarakbaad ...

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  6. Word verification hata lenge to bahut achhaa hoga ...

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  7. Dineshji,
    bahut achchhi ghazalen hain. aapki kitab kahan mil sakti hai?
    -antima kinger

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  8. सच-सच कहना हँसने वाले
    क्या तू भी नाशाद नहीं है।
    ज़िंदगी की हक़ीक़त को बयान करता हुआ ख़ूब्सूरत शेर

    गली के पुराने शजर के तले
    तुझे आज तक ढूँढती है ग़ज़ल।

    बहुत ख़ूब!

    दार पर आज जो गया हँसकर
    क्या ख़बर कल फ़रीद हो जाए।
    बहुत मा’रके का शेर ,लासानी,वाह!

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