tag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post5472046942641313120..comments2023-08-03T08:00:42.581-07:00Comments on सुख़नवर2सुख़नवर: नई ग़ज़लsukhanvar2sukhanvarhttp://www.blogger.com/profile/10461331331274272480noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-89841901669880307242011-03-02T06:26:55.204-08:002011-03-02T06:26:55.204-08:00भाई दिनेश ठाकुर जी!
मैं आपके ब्लॉग को काफी पहले से...भाई दिनेश ठाकुर जी!<br />मैं आपके ब्लॉग को काफी पहले से फौलो कर रहा हूं . लेकिन आज पहली बार फैज़ की ज़मीन पर आपकी ग़ज़ल पढ़ी. इसका हर शेर मुतआसिर कर रहा है लेकिन खास तौर पर यह शेर बहुत पसंद आया-<br />न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br />बधाई! <br />-देवेन्द्र गौतमdevendra gautamhttps://www.blogger.com/profile/09034065399383315729noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-60093750637315795572010-07-28T10:15:03.805-07:002010-07-28T10:15:03.805-07:00न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है
फ़क़ीरी म...न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br /><br />कुछ नहीं कह पाऊंगा .... <br />बस..... <br />वाह !!daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-88855343950961804632010-05-25T07:36:26.240-07:002010-05-25T07:36:26.240-07:00बहुत उम्दा ग़ज़ल है दिनेश ठाकुर जी.
एक-एक शे'र द...बहुत उम्दा ग़ज़ल है दिनेश ठाकुर जी.<br />एक-एक शे'र दिल छूने वाला है.<br />इस लाजवाब पेशकश के लिए<br />तहे-दिल से शुक्रिया.<br />..हबीब मोहम्मदAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/16649321267727335372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-45102172198866073832010-05-25T04:28:12.904-07:002010-05-25T04:28:12.904-07:00आपके अंदाज़े-बयाँ का जवाब नहीं दिनेश जी.
फैज़ साहब क...आपके अंदाज़े-बयाँ का जवाब नहीं दिनेश जी.<br />फैज़ साहब के मिसरे पर ज़बरदस्त ग़ज़ल पेश<br />की है आपने...<br />मेरे ख़्वाबों के सेहरा में चले आओ, चले आओ<br />बड़ा पुरकैफ़ आलम है के लासानी नहीं जाती.<br />वाह..वाह..वाह. जज़्बात की इस गहराई को सलाम.<br />यूँ पूरी ग़ज़ल ही बेहद जानदार है. दाद कबूल करें.<br />लोकेश आनंदAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12224970562653200522noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-21576437830696734002010-05-25T04:22:22.033-07:002010-05-25T04:22:22.033-07:00आपके अंदाज़े-बयाँ का जवाब नहीं दिनेश जी.
फैज़ साहब क...आपके अंदाज़े-बयाँ का जवाब नहीं दिनेश जी.<br />फैज़ साहब के मिसरे पर ज़बरदस्त ग़ज़ल पेश<br />की है आपने...<br />मेरे ख़्वाबों के सेहरा में चले आओ, चले आओ<br />बड़ा पुरकैफ़ आलम है के लासानी नहीं जाती.<br />वाह..वाह..वाह. जज़्बात की इस गहराई को सलाम.<br />यूँ पूरी ग़ज़ल ही बेहद जानदार है. दाद कबूल करें.<br />लोकेश आनंदAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12224970562653200522noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-37531862618788215502010-05-24T03:49:13.659-07:002010-05-24T03:49:13.659-07:00भरे हैं रंग जो तुमने ग़ज़ल में आज ए "ठाकुर&qu...भरे हैं रंग जो तुमने ग़ज़ल में आज ए "ठाकुर" <br />करें तारीफ़ हम कैसे ? परेशानी नहीं जाती <br /><br />वाह ! वाह !! वाह !!! <br />आनंद आ गया !!!!jogeshwar garghttps://www.blogger.com/profile/18415761246834530956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-65860386497169957292010-05-21T04:15:30.525-07:002010-05-21T04:15:30.525-07:00वाह ! वाह !! दिनेश जी आपने फैज़ साहब के
मिसरे पर ज़...वाह ! वाह !! दिनेश जी आपने फैज़ साहब के <br />मिसरे पर ज़बरदस्त तरन्नुम वाली ग़ज़ल<br />पेश की है. पढ़ कर लुत्फ़ आ गया. क्या खूब<br />अंदाज़े-बयाँ है आपका...<br />उसे कब होश है इसका कहाँ दिल रख दिया लेकर<br />सितमगर की, मुहब्बत में भी नादानी नहीं जाती.<br />निहायत मासूम और उस्तादी वाला शे'र है.<br />दाद क्या, इस ग़ज़ल पर दिल कुर्बान.<br />-राशिद खानAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/11209344795424864549noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-82080686936273355482010-05-20T06:53:42.223-07:002010-05-20T06:53:42.223-07:00क्या खूब ग़ज़ल रची है आपने. हर शे'र में उस्तादों...क्या खूब ग़ज़ल रची है आपने. हर शे'र में उस्तादों वाला रंग है.<br />पहले शे'र से आखिरी शे'र तक ग़ज़ब की लय है. आपका यह<br />हुनर हमेशा बरक़रार रहे..हार्दिक शुभकामनाएँ.<br />-तृप्ति भटनागरAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/03427989301651454308noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-75080894410429526302010-05-20T03:53:26.891-07:002010-05-20T03:53:26.891-07:00दिनेश जी, आपने बहुत दिलकश ग़ज़ल पेश की है.
ग़ज़ल पर आप...दिनेश जी, आपने बहुत दिलकश ग़ज़ल पेश की है.<br />ग़ज़ल पर आपकी ज़बरदस्त पकड़ से बखूबी वाकिफ हूँ.<br />फ़ैज़ साहब के मिसरे पर आपने एक से बढ़ कर एक शे'र<br />निकाले हैं. बस, एक गुज़ारिश है की उर्दू के कठिन अल्फ़ाज़<br />के हिंदी अर्थ भी ज़रूर दिया करें, क्योंकि मेरे जैसे कई पाठक<br />होंगे, जिनकी 'ख़राबा', 'ख़सारा', 'उरियानी', 'तुगियानी', 'अरज़ानी'<br />और 'लासानी' से जान-पहचान कम ही होगी. कृपया मेरी बात <br />को अन्यथा मत लीजिएगा. ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई.<br />सुनील भसीन, पेरिस (फ्रांस)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05868039368139744004noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-51075411172727505002010-05-19T08:51:33.134-07:002010-05-19T08:51:33.134-07:00हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ...हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई<br />कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करेंअजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-88569230931820189732010-05-19T05:07:24.125-07:002010-05-19T05:07:24.125-07:00दिनेश जी, मैं आपको कई साल से लगातार पढ़ रहा हूँ......दिनेश जी, मैं आपको कई साल से लगातार पढ़ रहा हूँ...उस ज़माने<br />से जब आपकी ग़ज़लें 'सारिका' में छपा करती थीं. आपके<br />अंदाज़े-बयाँ और अल्फाज़ के चुनाव का क़ायल हूँ.<br />यह लाजवाब ग़ज़ल आपने भले फैज़ अहमद फैज़ के मिसरे<br />पर लिखी हो, इसके एक-एक शे'र पर आपका रंग<br />साफ़ महसूस होता है. बहुत-बहुत बधाई.<br />-यश मित्तलAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/11182742200412236445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-88176791408714490132010-05-19T03:31:18.587-07:002010-05-19T03:31:18.587-07:00वाह..वाह जनाब दिनेश ठाकुर सा'ब क्या खूब ग़ज़ल तख...वाह..वाह जनाब दिनेश ठाकुर सा'ब क्या खूब ग़ज़ल तख्लीक़ की <br />है आपने.. पढ़ कर रूह वज्द में आ गई....इन शे'रों का तो<br />कहना ही क्या....<br />लिपट कर फूल से रोती रही तितली बग़ीचे में<br />शिकायत थी कि रंगो-बू से उरियानी नहीं जाती.<br />पनाहें माँगने वाले मुसलसल बढ़ गए, लेकिन<br />महल के बंद दरवाज़ों से अरज़ानी नहीं जाती.<br />न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br />मिचौली के लिए उसने कभी आँखों पे बाँधी थी<br />मेरे ख़्वाबों से अब तक वो चुनर धानी नहीं जाती.<br />तहे-दिल से दाद कबूल फरमाइए...उम्मीद है आपका कलाम<br />मुसलसल पढ़ने को मिलता रहेगा.<br />-सबा कैफ़ीAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/14805104459866238559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-4695631652805759172010-05-19T01:17:28.624-07:002010-05-19T01:17:28.624-07:00न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है
फ़क़ीरी म...न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br />ye aap ko nazar karta hua aap ko aadab kahuga , dinesh jee aap ki gazal ka har sher damdaar hai , kis kis sher ki taarif karu , bas itna hi kah sakta hoo wa wa wa...<br />saadarसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-44867185968537981482010-05-19T00:17:23.572-07:002010-05-19T00:17:23.572-07:00इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास...क...इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास...कमाल किया है आपने...सुभान अल्लाह...ग़ज़ल सीधे दिल में घर कर गयी...दिली दाद कबूल करें...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-6042376205605544182010-05-18T16:37:35.889-07:002010-05-18T16:37:35.889-07:00न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है
फ़क़ीरी म...न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br /><br />वाह!<br />बहुत उम्दा !<br />दिनेश जी ,बहुत सच्चा शेर है ,<br />पूरी ग़ज़ल एक तरफ़ और ये शेर एक तरफ़,बहुत ख़ूब!इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-73404052586124029152010-05-18T10:44:11.429-07:002010-05-18T10:44:11.429-07:00न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है
फ़क़ीरी म...न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती.<br /><br />भई वाह, हासिले गजल शेर है <br /><br />हमारी चश्मे-तर पे रख गया है वक़्त वो चश्मा<br />'बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती'.<br /><br />मिसरा भी बहुत खूबसूरत बान्धा है दोनों मिसरे अलग अलग लिखे गये लग ही नहीं रहे <br /><br />बधाई कबूल करेंवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-82657690417060144422010-05-18T07:45:09.189-07:002010-05-18T07:45:09.189-07:00हमारी चश्मे-तर पे रख गया है वक़्त वो चश्मा
'बह...हमारी चश्मे-तर पे रख गया है वक़्त वो चश्मा<br />'बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती'.<br /><br />इस शेर को पढने के बाद अब मैं क्या लिखूं आपकी तरफ में. दिनेशजी; बहुत ही अच्छा महसूस हुआ आपके ब्लॉग पर आकर.नरेश चन्द्र बोहराhttps://www.blogger.com/profile/02704671927129198311noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-41198723192636594282010-05-18T06:27:14.328-07:002010-05-18T06:27:14.328-07:00बहुत उम्दा ग़ज़ल है दिनेश जी..
एक-एक शे'र नगीने ...बहुत उम्दा ग़ज़ल है दिनेश जी..<br />एक-एक शे'र नगीने की तरह<br />तराशा हुआ महसूस होता है.<br />बहुत-बहुत आभार आपका.<br />निहारिका व्यासAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/01566605570707260715noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-52620366762584042262010-05-18T05:51:53.820-07:002010-05-18T05:51:53.820-07:00दिनेश ठाकुर साहेब,
आदाब,
बहुत पुरअसर और पुरलुत्फ ग़...दिनेश ठाकुर साहेब,<br />आदाब,<br />बहुत पुरअसर और पुरलुत्फ ग़ज़ल बुनी है आपने.<br />सभी शे'रों में ग़ज़ब की रवानी है. मुश्किल बहर को<br />आखिर तक खूब निभाया है आपने. तितली और<br />मजदूरों वाले शे'र तो ग़ज़ल की जान हैं.<br />ढेर सारी दाद कबूल कीजिए..शुक्रिया.<br />-रोशन राहीAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/07738681589320412854noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-10767818310440780852010-05-18T04:09:12.406-07:002010-05-18T04:09:12.406-07:00दिनेश जी,
उर्दू वर्ल्ड पर आपकी यह लाजवाब ग़ज़ल
रोमन ...दिनेश जी,<br />उर्दू वर्ल्ड पर आपकी यह लाजवाब ग़ज़ल<br />रोमन स्क्रिप्ट में पढ़ चुकी हूँ, लेकिन अपनी<br />हिंदी में पढ़ कर अलग ही आनंद महसूस<br />किया. उर्दू वर्ल्ड पर तो इस ग़ज़ल पर<br />दुनिया भर से कमेंट्स भी शानदार आ <br />रहे हैं. मुबारकबाद क़बूल कीजिए.<br />सादर,<br />अंतिमा किंगर, मुंबईANTIMA KINGERhttps://www.blogger.com/profile/09109561293910876792noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-43260791940662681182010-05-18T03:35:25.459-07:002010-05-18T03:35:25.459-07:00जनाबे दिनेश ठाकुर साहिब
आदाब
फैज़ की ज़मीन पर आपन...जनाबे दिनेश ठाकुर साहिब <br />आदाब <br />फैज़ की ज़मीन पर आपने ख़ूबसूरत गुल खिलाएं हैं <br />एक से बढ़ कर एक आपका यह शेर तो दिल में उतर गया है <br /><br />लिपट कर फूल से रोती रही तितली बग़ीचे में<br />शिकायत थी कि रंगो-बू से उरियानी नहीं जाती<br /><br />आदाब <br /><br />चाँद शुक्ला हदियाबादी <br />डेनमार्कhaidabadihttps://www.blogger.com/profile/00389775957099138608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-87293130177630167712010-05-18T02:50:54.322-07:002010-05-18T02:50:54.322-07:00दिनेश ठाकुरजी
बहुत पुख़्ता और रवां-दवां ग़ज़ल कही है...दिनेश ठाकुरजी <br />बहुत पुख़्ता और रवां-दवां ग़ज़ल कही है । हर शे'र क़ाबिले-ता'रीफ़ है । <br />गुनगुनाने को मन करता है…<br />"न जाने कौन-सी मिट्टी से रब इनको बनाता है<br />फ़क़ीरी में भी मज़दूरों की सुलतानी नहीं जाती."<br />…क्या एहसास का शे'र है …<br />"मिचौली के लिए उसने कभी आँखों पे बाँधी थी<br />मेरे ख़्वाबों से अब तक वो चुनर धानी नहीं जाती."<br />…और बड़ा म'सूम शे'र है …<br />"उसे कब होश है इसका कहाँ दिल रख दिया लेकर<br />सितमगर की, मुहब्बत में भी नादानी नहीं जाती."<br />वाह - वाह ! क्या कहने !<br />बहुत-बहुत बधाई !<br />- राजेन्द्र स्वर्णकार <br /><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com" rel="nofollow">शस्वरं</a>Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7720977038890785609.post-90517967329837855032010-05-18T01:42:19.700-07:002010-05-18T01:42:19.700-07:00मिचौली के लिए उसने कभी आँखों पे बाँधी थी
मेरे ख़्वा...मिचौली के लिए उसने कभी आँखों पे बाँधी थी<br />मेरे ख़्वाबों से अब तक वो चुनर धानी नहीं जाती.<br />और<br />उसे कब होश है इसका कहाँ दिल रख दिया लेकर<br />सितमगर की, मुहब्बत में भी नादानी नहीं जाती.<br />भई वाह। बहुत खूब।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.com